हर माँ और जिन के घर में छोटे बच्चे हो उन के लिए महत्वपूर्ण जानकारी।
पांच साल तक के बच्चों में रोटावायरस यानि डायरिया का खतरा होता है |
रोटावायरस एक तरह का इनफेक्शन है जो अतिसार यानि दस्त का बिगड़ा हुआ रूप होता है | रोटावायरस जो ठंड में अधिकतर बच्चों में फैलता है वह एक बहुत ही खतरनाक रोग है। यदि यह किसी बच्चे को हो जाए तो उसके संपर्क में रहने से दूसरे बच्चे को भी यह आसानी से फ़ैल जाता है | यह इंन्फेक्शन विशेषकर गंदगी के कारण होता है | यदि इससे पीडित बच्चे का खिलौना भी कोई दूसरा बच्चा मुंह में डाले तो उसे भी यह रोग हो सकता है ।
इस इन्फेक्शन के होते ही बच्चे को दस्त तथा उल्टियां लग जाती है यह एक तरह का डायरिया यानि कि दस्तका बिगड़ा रूप जैसा होता है जो आम डायरिया से कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता है | इसकी वजह से बच्चों में उल्टी व दस्त की वजह से डिहाईड्रेशन तक की समस्या हो जाती है ।
वैसे तो पूरे साल इसका खतरा बना ही रहता है परंतु ठंड में यह खतरा अधिक बढ जाता है | ये बीमारी गोद के बच्चे से लेकर पांच साल तक के बच्चों में अधिक पाई जाती है। इस कारण गोद के बच्चों को ऊपर का दूध नही देना चाहिए। जहां तक हो उन्हें माँ का दूध ही पिलाना चाहिए । इस रोटावायरस की चपेट में आने की हालत में बच्चे पर जान का खतरा भी हो सकता है। कुछ प्राकृतिक उपाय अपनाकरआप अपने बच्चे को इस खतरे से कुछ हद तक बचा सकते हैं ।
यह बच्चों की आम परेशानी होती है।
चार-पांच माह का बच्चा जब मां के दूध के साथ-साथ ऊपर के दूध तथा अन्य आहार पर भी निर्भर होने लगता है तो उसपर ठोस आहार दिया जाने के कारण डायरिया का खतरा बढ़ जाता है | केवल स्तनपान पर रहने वाले शिशु को आप कई रोगों से बचा सकते हैं लेकिन जैसे ही ऊपरी दूध या अन्य ठोस आहार बच्चा लेना शुरू करता हैं, तो बच्चे में पाचन संबंधी तथा अन्य परेशानियां पैदा होने लगती हैं।
बच्चों में रोटावायरस (अतिसार) के कारण
जरा भी आहार परिवर्तन करते ही बच्चो के पाचन संस्थान पर उसका पूरा नकारत्मक असर पड़ता है क्यूंकि छोटे बच्चों की आंतें काफी नाजुक होती हैं जिसकी वजह से उन्हें तकलीफ होने लगती हैं। बच्चों की पाचन शक्ति कमजोर होने के कारण प्रारंभिक अवस्था में वह ऊपरी आहार ठीक से हजम नहीं कर पाते और उन्हें दस्त लग जाते हैं। इस कारण शुरूवाती 2-3 साल तक बच्चों की विशेष देखभाल करनी पड़ती है। अन्यथा बच्चे काफी कमजोर हो जाते हैं। अतिसार या पतले दस्त यह पाचन संस्था का विकार है, जो पतले मल के रूप में बाहर आता है। इससे बच्चों को तुरंत डिहाइड्रेशन की समस्या झेलनी पड़ती है। यदि तुरंत उपचार मिले तो स्वास्थ्य लाभ हो जाता है वर्ना यह जानलेवा भी हो सकता है |
- यदि बच्चा मां का दूध ग्रहण करता है और मां गरिष्ठ भोजन लेती हो, तो बच्चों को अतिसार की समस्या हो सकती है |
- ये समस्या गर्मी या बरसात तथा सर्दियों में भी अधिक होती हैं |
- यदि माता दस्त से ग्रस्त हो, तो दूध पीने वाला बच्चा भी ग्रसित हो जाता है |
- बोतल से दूध पीने वाले बच्चों की बोतल की सफाई न होने के कारण उन्हें अतिसार की समस्या हो सकती है |
- यदि ऊपर का भरी दूध पचाने में बच्चा असमर्थ हो रहा है , तो उसे अतिसार की परेशानी हो सकती है |
- गर्मीयों में कई बार बच्चा दूध हजम नहीं कर पाता है जिससे अतिसार या दस्त हो सकते हैं |
- दांत निकलते समय बार बार बच्चा मुंह में गन्दी चीजें डाल लेता है, जिससे बच्चे को इन्फेक्शन हो जाता है और वह अतिसार से ग्रसित हो जाता है |
- यदि बच्चे को दस्त के साथ-साथ आंव, झागयुक्त, बदबूदार, पीला या हरा दस्त हो, तो जान लीजिये कि बच्चे में पानी की अत्यधिक कमी हो चुकी है। इस पर तुरंत ध्यान दें डॉक्टर से परामर्श लें और सिर्फ घरेलू इलाज में न उलझे रहे |
- यदि अतिसार के साथ उल्टी भी हो और साथ में बुखार भी हो या बच्चा बिल्कुल सुस्त हो या आंखें भीतर धंस गयी हों तो इसकी चिकित्सा में सबसे पहले तीन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए :-
- बच्चे के शरीर में डिहाइड्रेशन न होने पाए
- इस समय सही व उचित आहार दिया जाए
- दस्त होने के कारणों को दूर किया जाए
इस समय सबसे बड़ी समस्या होती है जो बच्चो को हो सकती है वह होती है डिहाइड्रेशन | इस समस्या का समाधान जीवनरक्षक घोल (ORS ) बार-बार देना बेहद जरूरी होता है।
कैसे बनाये जीवनरक्षक घोल अपने घर में
एक गिलास पानी लें उसे उबाल कर ठंडा कर लें । इसमें एक चुटकी नमक, एक चम्मच चीनी,चार,पाँच बूंद नीबू मिलायें, इस घोल को अच्छी तरह मिला कर रखें। दिन में इसे बार-बार पिलाते रहें। साथ ही मरीज़ को अन्य पेय पदार्थ अवश्य दिए जाने चाहिए जैसे कि- दही, छाछ, साबूदाना, दाल का पानी, नारियल पानी। साथ ही हल्का-फुल्का आहार अवश्य देते रहें जैसे पतली खिचड़ी , दलीया ,दाल का पानीआदि |
उपाय-
- इसके लिये सबसे पहले जरूरी है घर में साफ सफाई का होना बच्चा रहता हो |
- उसके सभी खिलुने समय समय पर साफ़ किये जाने चाहिए |
- बच्चे को सस्ते प्लास्टिक के खिलौने न दिलाएं क्यूंकि उनमें गंदे रंग तथा खतरनाक केमिकल्स का उपयोग किया जाता है |इससे अच्छा आप उसे बिना रंग वाले लकड़ी के खिलौने दें।
- ऊपर का दूध जैसे गाय या भैस का दूध तभी दें यदि बच्चा उसे पचाने में समर्थ है |
- दूध की बोतल से दूध पीने वाले बच्चे की बोतल को हर रोज़ उबलना ( sterlize) करना आवश्यक होता है |
- बच्चों की हर चीजों की साफ सफाई पर विशेष ध्यान रखें।
- दूध पिलाने वाली माँ के स्तनों का स्वच्छ होना भी ज़रूरी होता है | इसलिए माँ को भी स्वच्छ वस्त्र पहन कर ही बच्चे को दूध पिलाना चाहिए
- अगर माँ का दूध नहीं आता तो बच्चो को ऊपर का दूध ना दे कर सिर्फ दाल या चावल का पानी ही पिलाये।