
कैसे करता है रीठा का फल बवासीर को ठीक ?
आज की इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में कई लोग बवासीर से पीड़ित हैं। बवासीर का मुख्य कारण नियमित खानपान और कब्ज है। बवासीर एक बहुत ही शर्मनाक और कष्टकारी बीमारी है। इस बीमारी में आप ना तो अपना दर्द किसी को बता पाते हैं और ना ही छुपा पाते हैं। अतिसार, संग्रहणी और बवासीर-यह तीनो एक दूसरे को पैदा करते हैं। बवासीर के रोगी को हर बार मल त्याग के समय पीड़ा होती है। इस के इलाज के तौर पर एलोपैथिक डॉक्टर्स ऑपरेशन करने की बात करते हैं, जोकि आपकी जेब को एक मोटी चपत होती है। इसलिए बवासीर का इलाज नहीं है क्योंकि ऑपरेशन के बाद भी फिर से बवासीर हो सकता है।
बवासीर मुख्य तौर पर दो प्रकार की होती हैं:-
- खुनी बवासीर: खुनी बवासीर में रोगी के मलद्वार पर सुर्ख मस्से होते हैं तथा उनसे हरबार खून बहता है।
- बादी बवासीर: हालाँकि बादी बवासीर में मलद्वार मौजूद मस्सो में ख़ारिश-खुजली, दर्द तथा सूजन अधिक रहती हैं।
बवासीर के लक्षण:-
- सूजन जो गुदाद्वार या मलद्वार के अंदर भी हो सकती है और बहार भी।
- मल त्याग करते समय पीड़ा।
- मलद्वार के आस-पास खुजली होना।
- शौच के समय खून का निकलना।
- बैठने पर दर्द होना।
- शौच करने पर भी पेट खाली नहीं लगना।
- यह औरतों में ख़ास कर के गर्भावस्था के समय हो सकता है और इस में काफी अधिक दर्द होता है। बच्चे के जन्म के बाद बवासीर के लक्षण कम हो जाते हैं। गर्भावस्था में प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन का स्त्राव होता है जिस से खून की नाली फूल जाती है और यह बवासीर के रूप में दिखाई देता है।
इसलिए आज हम आपको घर पर बनाई जा सकने वाली एक ऐसी औषधि के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बस सात दिन सेवन करने से आप कब्ज, बवासीर की खुजली, बवासीर से खून बहना आदि सभी रोगों से राहत महसूस करने लगेंगे।
औषधि बंनाने की विधि:
इस औषधि को बनाने के लिए आपको अरीठे या रीठा (Soap nut) के फल की आवश्यकता पड़ेगी। आपको करना बस इतना है कि रीठा के फल में से बीज निकाल लें तथा बाकि के हिस्से को लोहे की कढाई में डालकर कोयला बनने तक गर्म करें और जब वह जल कर कोयले की तरह हो जाए, तब आग पर से उतार लें। अब इसमें सामान मात्रा में पपडिया-कत्था मिलाकर इसको सूती कपडे से छान कर इसका चूर्ण बना लें। अब आपकी औषिधि तैयार हो गई है।
औषधि का सेवन:
आप सात दिन तक इस औषिधि में से रोज़ाना एक रत्तीभर (125मिलीग्राम ) मात्रा में मक्खन अथवा मलाई के साथ सुबह-शाम इसका सेवन करें। इस औषिधि का सात दिन तक सेवन से ही आपको काफी चमत्कारी परिणाम मिलेंगे। यदि आप इस रोग के लिए हमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहते हैं तो आप हर छ: महीने के बाद फिर से 7 दिन का इस औषधि का सेवन इसी प्रकार दोहरा लें।
विशेष सुचना: औषिधि के सेवन दौरान ध्यान रखें कि औषिधि लेते समय सात दिन तक नमक का सेवन बिलकुल भी ना करें। देशी इलाज में पथ्यापथ्य का विशेष ध्यान रखा जाता है कई रोगों में तो दवाई से ज्यादा तो पथ्य आहार जादा कारगर होता है।
औषिधि सेवन के दौरान क्या-क्या खाएं-
मुंग या चने की दाल, कुल्थी की दाल, पुराने चावलों का भात, सांठी चावल, बथुआ, परवल, तोरई, करेला, कच्चा पपीता, गुड, दूध, घी, मक्खन, काला नमक, सरसों का तेल, पका बेल, सोंठ आदि का ही सेवन करना चाहिए।
औषिधि के सेवन दौरान क्या-क्या न खाएं-
उड़द, धी, सेम, भारी तथा भुने पदार्थ, घिया, धूप या ताप, अपानुवायु को रोकना, साइकिल की सवारी, सहवास, कड़े आसन पर बैठना आदि यह सभी बवासीर के लिए हानिकारक है।