कान का मैल से पता लगेगा बिमारियों का, जानिए कुछ और रोचक बातें

कान का मैल से पता लगेगा बिमारियों का, जानिए कुछ और रोचक बातें

कान का मैल कुछ उन शारीरिक पदार्थों में से एक है जिसकी चर्चा करना अमूमन हम पसंद नहीं करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है इसके कई फायदे भी होते है। शरीर के अन्य स्रावों की तरह हम में से ज्य़ादातर अकेले में इससे निपटना पसंद करते हैं, तब भी कई लोगों के लिए यह एक आकर्षण का विषय है। पहले इसका इस्तेमाल एक लिप बाम और जख्मों पर मरहम के तौर पर किया जाता था। लेकिन यह इससे कुछ ज़्यादा कर सकता है।

हाल के शोध से पता चलता है कि यह शरीर में प्रदूषक पदार्थ इक_ा होने का संकेत देता है और इससे शरीर में कुछ बीमारियों का भी पता लगाया जा सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक आप कान में स्याही की एक बूंद डाल कर देखिए, कुछ हफ्तों के बाद पाएंगे कि कोशिकाओं के साथ ये बाहर आ रही है। यदि ऐसा नहीं होता है तो कान का छेद प्राकृतिक प्रक्रिया से बनी मृत कोशिकाओं से भर जाएगा।

इसी तरह से कान का मैल भी आगे बढ़ता है। ऐसा माना जाता है कि खाने-पीने के दौरान जबड़े के हिलने से भी ये मैल बाहर आता है। डॉक्टरों ने रिसर्च में पाया है कि उम्र बढऩे के साथ कभी-कभी यह मैल ज़्यादा काला हो जाता है और जिन लोगों के कान में बाल ज़्यादा होते हैं उनके कान से मैल बाहर नहीं आ पाता है। कान के मैल में मोम होता है लेकिन यह मूल रूप से मृत केराटिनोसाइट्स कोशिकाओं का बना होता है। कान का मैल कई पदार्थों का मिश्रण होता है।

करीब 1 से 2 हजार के बीच ग्रंथियां एंटी-माइक्रोबियल पेप्टाइड बनाती हैं। बालों की कोशिकाओं के करीब मौजूद वसा की ग्रंथियां मिश्रित एल्कोहल स्कुआलीन नाम का तेल, कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड बनाती हैं। महिलाओं और पुरूषों में कान का मैल एक समान मात्रा में बनता है लेकिन एक अध्ययन से पता चला है कि ट्राइग्लिसराइड की मात्रा नंवबर से जुलाई के बीच कम हो जाती है।

कान के मैल में लाइसोज़ाइम भी पाया जाता है जो एक एंटी-बैक्टिरियल एंज़ाइम होता है। कान के मैल में कई अन्य शारीरिक स्राव की तरह कुछ भारी धातुओं के रूप में कुछ विषाक्त पदार्थ हो सकते है, लेकिन एक तो यह ऐसी चीज़ देखने के लिए एक अजीब जगह है और दूसरी बात ये कि एक साधारण रक्त परीक्षण से ज़्यादा विश्वसनीय नहीं है।

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