
आयुर्वेद के अनुसार मधुर, शीतल, पीपल कसैला, रुक्ष, भारी, शरीर का वर्ण निखारने वाला है। साथ ही यह पित्त, काफ एवंम रक्तदोष नष्ट करता है तथा यह पौष्टिक गुणों से युक्त होता है। यह सभी प्रकार के रक्त विकार, दुर्बलता व चर्मरोगों में, दाँतों व मसूड़ों के दर्द निवारणार्थ, यकृत प्लीहा के रोगों में भी बहुत लाभदायक है। पुरुष की शारीरिक बीमारियां जैसे पतलापन, वीर्य की कमी, बहुमूत्रता, नपुंसकता तथा स्त्री रोगों में बांझपन, प्रदर, प्रमेह, गर्भ शोधन आदि में भी बहुत ही प्रभावकारी है।
चलिए जानते हैं इसके उपयोगों के बारे में!!
मसूड़ों तथा दाँतों के लिए:-
- पीपल एवम बरगद की अन्तर्छाल को बराबर लेकर कर काढ़ा बनाकर कुल्ले करने से।
- दांत एवम मसूड़ों के रोगों में प्रयाप्त लाभ होता है।
- मसूड़ों की सूजन, खून का आना, मसूड़ों से मवाद का आना इत्यादि रोगों में यह परम लाभकारी है।
पुरुष रोगों में
पीपल पर लगने वाला फल छाया में सुखा कर पीस कर मैदा छानने वाली चलनी से छान लें. इसके एक चौथाई चम्मच को 250 ग्राम दूध में मिलाकर पियें। इस के नियमित सेवन से वीर्य बढ़ता है तथा नपुंसकता दूर होती है। बहुमूत्र की समस्या सही होगी एवम कब्ज रोग सही होगा।
पीपल की अन्तर्छाल स्तंभक एवम वीर्यवर्धन का गुण रखती है। इसके लिए इसकी अन्तर्छाल का काढ़ा बना कर पीना चाहिए।
महिलाओं के रोगों में:-
- योनी रोग, मासिक धर्म के विकार, प्रमेह, प्रदर, सफ़ेद पानी दूर होते हैं।
- इसके फल को छाया में सुखाकर मैदे की तरह 1 पाव दूध के साथ लें।
- इसका बंध्या स्त्री सेवन करें तो संतान उत्पन्न होगी।
गर्भ शोधन तथा बाँझपन में:-
- बांझपन में या गर्भ शोधन के लिए स्त्री को रजोनिवृति के बाद लगातार 5 दिन तक हर रोज़ पीपल के 1 ताज़े पत्ते को गाय के दूध में उबालकर पीने से गर्भाशय शुद्ध होता है।
- इससे गर्भ स्थापना होने पर उत्तम संतान उत्पन्न होती है।
- जब तक गर्भ स्थापना ना हो यह प्रयोग हर महीने करना चाहिए।
- इसके लिए हर बार नया ताज़ा पत्ता इस्तेमाल करें।