शीतली प्राणायाम: जैसा नाम वैसा काम

जैसा नाम वैसा काम। यह कहावत शीतली प्राणायम के लिए एकदम सटीक बैठती है। शीतली प्राणायाम से गर्मी के मौसम में राहत पाई जा सकती है। शीतली प्राणायाम प्राणायाम ना केवल शीतलता प्रदान करता है, बल्कि मन की शांति भी देता है। शरीर को ठंडक पहुंचाने के कारण इसे कूलिंग ब्रीथ कहा जाता है। इस प्राणायाम को सभी योगासन को करने के बाद सबसे अंत में किया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से सभी योगासनों को करने की थकान दूर होकर पूरे शरीर में ठंडक का एहसास होता हैं।

इस प्राणायाम से सम्पूर्ण शरीर यंत्र को ठंडक प्राप्त होती है और कान एवं नेत्र को शक्ति मिलती है। शीतली प्राणायाम करने से पहले स्नान कर लेना चाहिए। आसन और प्राणायाम के बाद स्नान करना चाहें तो कम से कम आधे घंटे का अंतराल रखें ताकि इस दौरान रक्त का संचार सामान्य हो जाए। यह प्राणायाम हर मौसम में हर जगह आसानी से किया जा सकता है। प्राणायाम का अभ्यास होने के बाद गर्मी के मौसम में इसकी अवधि आवश्यकता अनुसार बढ़ा सकते हैं।

चलिए जानते हैं इस योग के बारे में!!

प्राणायाम करने की विधि:-

  • जीभ बाहर निकाले।
  • जीभ को दोनों ओर से इस प्रकार मोड़ें कि जीभ की आकृति ट्यूब जैसी बन जाए।
  • इस ट्यूब की सहायता से आप मुँह से साँस भरिए।
  • हवा इस ट्यूब से गुजरकर मुँह तथा तालु को ठंडक प्रदान करेगी।
  • इसके बाद जीभ अंदर कर लें तथा नियंत्रणपूर्वक साँस धीरे-धीरे नाक के द्वारा बाहर निकाल लें।
  • साँस भरते हुए आपको आवाज़ सुनाई देगी, जिस प्रकार तेज़ हवा चलने पर हमारे आसपास आवाज़ सुनाई देती है।
  • शीतली प्राणायाम का अभ्यास दस बार कभी भी कर सकते हैं।
  • गर्मी के मौसम में इसकी अवधि इच्छानुसार बढ़ाई जा सकती है।
  • प्राणायाम के समय साँस लयबद्ध और गहरी होना चाहिए।
  • शीतकारी प्राणायाम में मुंह बंद कर दंत पंक्तियों को मिलाकर मुंह से श्वास लेते हैं और नाक से ही श्वास छोड़ते हैं।
  • प्रदूषित जगह में इस प्राणायाम का अभ्यास न करें।
  • कम से कम 10 चक्रों का अभ्यास करें।
  • अभ्यस्त होने पर 5 से 10 मिनट तक अभ्यास करें।

प्राणायाम करने की लाभ:-

  • प्राणायाम के अभ्यास से पहले योग गुरू के दिशा निर्देशों का पालन अवश्य करें और कुछ बातों का ख़ास ख़्याल रखें।
  • ब्लड प्रेशर कम होने या जिन्हें सर्दी-खाँसी, दमा, ब्रोंकाईटिस, कफ आदि की समस्या होने पर शीतली प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
  • सर्दियों में शीतली प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह प्राणायाम शरीर को शीतलता प्रदान करता है। धूल भरे वातावरण में भी प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  • प्राणायाम से ह्रदय, फेफड़े, और तंत्रिका तंत्र मज़बूत होते हैं। उनकी कार्यक्षमता बढ़ती है।
  • इससे माँसेपेशियों में स्थिरता और ढ़ीलापन आता है. रक्तचाप भी कम होता है. इसलिए उच्च रक्तचाप वालों के लिए शीतली प्राणायाम फायदेमंद है। एसिडिटी की शिकायत होने पर भी इससे लाभ होता है।
  • इससे मानसिक स्तर पर शाँति मिलती है तथा भावनात्मक संतुलन आता है। शरीर में प्राणों का प्रवाह नियमित होता है।
  • शीतली प्राणायाम के अभ्यास से भूख-प्यास पर नियंत्रण प्राप्त होता है। शरीर को ठंडक मिलती है। गर्मियों में इसका अभ्यास करना चाहिए।

ख़ास बातें:-

  • जो लोग खाते रहने की आदत से परेशान हैं, उन्हें यह प्राणायाम जरूर करना चाहिए क्योंकि यह गैर जरूरी भूख कम करता है। यह प्राणायाम ब्लडप्रेशर कम करता है। एसीडिटी और पेट के अल्सर तक में आराम मिलता है।
  • इसके अभ्यास से मानसिक उत्तेजना एवं उदासीनता दोनों दूर हो जाती हैं। मस्तिष्क के स्नायु, नाड़ी संस्थान तथा मन शांत हो जाता है। यह प्राणायाम अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग और अल्सर में रामबाण का काम करता है। चिडचिडापन, बात-बात में क्रोध आना, तनाव तथा गर्म स्वभाव के व्यक्तियों के लिए यह विशेष लाभप्रद है।
  • नाक से साँस लें। नाक से ही साँस छोड़ें। प्राणायाम सूर्योदय के समय करें। सूर्यास्त के समय भी प्राणायाम कर सकते हैं। कड़ी धूप में प्राणायाम नहीं करें। प्राणायाम से पहले कोई आसन ज़रूर करें।
  • अभ्यास से पहले स्नान करना बेहतर है। सर्दी ज़्यादा होने पर हाथ, पैर और चेहरे को धोने के बाद प्राणायाम करें। आसन और प्राणायाम के बाद स्नान करना चाहें तो कम से कम आधे घंटे का अंतराल रखें ताकि इस दौरान रक्त का संचार सामान्य हो जाए।
  • प्राणायाम के अभ्यास के दौरान शुरू में हम इसके लाभों को देख नहीं पाते लेकिन सूक्ष्म तथा स्थूल रूप से हमारे शरीर और मन को लाभ मिलता है।
  • प्राणायाम का अभ्यास हमेशा आसान तरीके से शुरू करना चाहिए। अभ्यास पर नियंत्रण पाने के बाद प्राणायाम की अवधि बढ़ाई जा सकती है।

सावधानियाँ:-

  • शीतली प्राणायाम के समय साँस लयबद्ध और गहरी होना चाहिए।
  • प्राणायाम के अभ्यास के बाद शवासन में कुछ देर विश्राम करें।
  • जहाँ तक संभव हो सूर्योदय या सूर्यास्त के समय ही यह प्रणायम करें।
  • तेज धूप में यह प्रणायाम न करें।
  • धूल भरे वातावरण में भी प्राणायाम नहीं करना चाहिए।

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